Sunday 20 March 2016

भीष्म पितामह ने शराब और माँस के बारे मे क्या कहा ?


भीष्म पितामह जैसा व्यक्ति क्षत्रियो मे न आज तक पैदा हुआ और ना होगा सा।

1-जिसने 300 अश्वमेघ यज्ञ करवाये हो।

2-श्रीक्रष्ण ने जिनको ज्ञान का सूर्य कहा हो।

3-जिनके पास ईच्छा मृत्यु का वरदान था सा।

4-जिसने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत पालन कि अखण्ड प्रतिज्ञा निभाई।

5-महा भारत का युद्ध 18 दिन चला,जिसमे भीष्म पितामह 9 दिन लडे।एक दिन के 10000 योद्धा काटे

9 दिन मे लगभग एक लाख योद्धा काटे और सब को स्वर्ग मिला हम से तो बन्ना एक दिन मे दस हजार गाजर मूली भी नही कटे सा।वह हमारा पुरखा भीष्म पितामह शराब और मांस के बारे मे कहता है सा

1-मांस खाने से पाप लगता है और शराब पिने से महापाप लगता हैपाप का प्रायश्चित है लेकिन महापाप का कोई प्रायश्चित नही है।2- सुरा [शराब] के स्पर्श अनाज और झूंठा खाना, खाने लायक नही होता है।

अनाज कि बोरी के शराब कि बोतल स्पर्श हो जाय तो उस अनाज को खाना नही चाहिए, उसको फेक देना चाहिए।3- मांस, मछली, अण्डा,

आसव और तिल मिले चावल ध्रुतो द्वारा प्रचलित खाना है।

4-दुषित [तामसिक] आहार करने वाला ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नही कर सकता।

क्योकि हम जो भोजन करते है उससे रस बनता है रस से खुन बनता है खून से मांस बनता है मांस से हड्डी बनती है हड्डी से मज्जा बनती है मज्जा से वीर्य बनता है शुद्ध वीर्य मनोहवा नाडी से दोनो भ्रकुटिया के बीच मे चला जाता है जिससे ओज बनता है और औज से तेज बनता है।हमारे पुरखे सात्विक खाना खाते थे जिससे उनके चेहरे पर तेज रहता था।

तेज यानी जिसके चेहरे को देखकर दुश्मन भयभीत हो जाये।और जो अशुद्ध वीर्य [रस] होता है उसको हमारे प्राण ग्रहण नही करते है और वो वीर्य हमारे शरीर मे ही धुमता रहता है। इसलिए लोगो मे वासना जाग्रती अधिक है।

इस अशुद्ध खान पान के कारण वासना, बलात्कार, दुस्कर्म हो रहे है।

इसलिए भिष्म पितामह ने कहा है की अशुद्ध खान पान [तामसिक] वाला व्यक्ति ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नही कर स कता।यह सब बाते वह कह रहा जिनको भगवान क्रष्ण ने "ज्ञान का सूर्य कहा है।" और लोगो ने हमारे दिमाग मे यह बिठा दिया कि ठाकूर तो ठेठ से ही खाते पिते आ रहे है।इसमे बिलकुल भी सच्चाई नही है सा।अगर हमको पहले गौरव वाला मान, सम्मान पान है तो वास्तविकता को अपनाना पडेगा और सात्विकता को अपनाना पडेगा,सत्य बोलना पडेगा और हमारे सती, भोमिया और झुंझार मे पूर्ण आस्था और विश्वास रखना पडेगा सा। "जय क्षात्र धर्म "

- Sagarbhai Sarteja (vahivancha barot) Saurashtra

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