Saturday, 23 April 2022

ક્યો પતિ ખરીદું

શહેરના બજારમાં એક બહુ મજલી દુકાન ખુલી જેનાં પર લખ્યું હતું

અહીં આપ પતિઓ ખરીદી શકો છો

સ્ત્રીઓનો એક જમાવડો ત્યાં 
જમા થવાં લાગ્યો. બધીજ સ્ત્રીઓ દુકાનમાં દાખલ થવાના માટે બેચેન હતી, લાંબી કતારો લાગી ગઈ
દુકાનના મુખ્ય દરવાજા પર લખ્યું હતું

"પતિ ખરીદવા માટે નિમ્ન શરતો લાગુ

 આ દુકાનમાં કોઈ પણ સ્ત્રી 

ફક્ત એક વાર જ દાખલ થઈ શકે છે

 દુકાનમાં 6 માળ છે અને 

પ્રત્યેક માળ પર પતિઓના પ્રકાર વિષે લખ્યું છે

 ખરીદાર સ્ત્રી કોઈ પણ માળ પરથી પોતાનો પતિ પસંદ કરી શકે છે
 પરંતુ એક વાર ઉપર ગયા બાદ ફરી નીચે આવી શકાશે નહી
સિવાય કે બહાર જવાં માટે

એક ખુબસુરત યુવતીને દુકાનમાં દાખલ થવાનો મોકો મળ્યો

પહેલા માળના દરવાજા પર લખ્યું હતું આ માળના પતિ સારી કમાણી વાળા છે અને નેક છે

યુવતી આગળ વધી

બીજા માળ પર લખ્યું હતું આ માળના પતિ સારી કમાણી વાળા છે નેક છે અને બાળકોને પસંદ કરે છે

યુવતી ફરી આગળ વધી

ત્રીજા માળના દરવાજા પર લખ્યું હતું આ માળના પતિ સારી કમાણી વાળા છે, નેક છે અને ખુબસુરત પણ છે

આ વાંચીને યુવતી થોડી વાર માટે રોકાઈ ગઈ, પરંતુ એ વિચાર કરીને કે ચલો ઉપરના માળ પર જઈને જોઇએ, આગળ વધી

ચોથા માળના દરવાજા પર લખ્યું હતું આ માળના પતિ સારી કમાણી વાળા છે, નેક છે, ખુબસુરત પણ છે અને ઘરના કામોમાં મદદ પણ કરે છે

એ વાંચીને યુવતીને ચક્કર આવવા લાગ્યાં અને વિચાર કરવા લાગી 
શું આવા મર્દ પણ આ દુનિયામાં 
હોઈ શકે

ચાલો
અહીંથી જ પતિ ખરીદી લઉં છું પરંતુ મન ન માન્યું 
એક ઓર માળ ઉપર ચાલી ગઈ

પાંચમા માળ પર લખ્યું હતું આ માળના પતિ સારી કમાણી વાળા છે, નેક છે,ખુબસુરત છે ઘરના કામોમાં મદદ કરે છે અને પોતાની પત્નીઓથી પ્યાર કરે છે

હવે આની અક્કલ જવાબ દેવા લાગી, તે વિચાર કરવા લાગી, આનાથી બેહતર મર્દ બીજો ક્યો હોઈ શકે ભલા 
પરંતુ તો પણ તેનું દિલ ન માન્યું 

અને આખરી માળ તરફ કદમ વધવા લાગ્યા

આખરી માળના દરવાજા પર લખ્યું હતું આપ આ માળ પર આવવા વાળી 23338 મી સ્ત્રી છો,

આ માળ પર કોઈ પણ પતિ છે જ નહીં,

આ માળ ફક્ત એટલા માટે બનાવવામાં આવ્યો જેથી એ વાતની સાબિતી દઈ શકાય કે સ્ત્રી ને પૂર્ણત સંતુષ્ટ કરવી નામુમકિન છે
અમારા સ્ટોર ની મુલાકાત બદલ આભાર

પગથિયાં બહારની તરફ જાય છે

પુન પધારવાની આવશ્યકતા નથી

સારાંશ
આજ સમાજની બધી કન્યાઓ અને વર પક્ષના પિતાઓ આ બધું કરી રહ્યાં છે હજુ સારું હજુ ઓર સારું

અને

સારું ના ચક્કરમાં લગ્નની સાચી ઉમર ખતમ થઈ રહી છે. હાથ મા મુકવાની મહેંદી ને વાળ મા મુકવી પડે

Monday, 18 April 2022

हनुमान चालीसा कब लिखा गया क्या आप जानते हैं ?

हनुमान चालीसा कब लिखा गया क्या आप जानते हैं ?

 नहीं तो जानिये, 

शायद कुछ ही लोगों को यह पता होगा ?

 

पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना तो सभी लोग करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं, 

पर यह कब लिखा गया, इसकी उत्पत्ति कहाँ और कैसे हुई यह जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी।


बात 1600 ईस्वी की है यह काल अकबर और तुलसीदास जी के समय का काल था।



एक बार तुलसीदास जी मथुरा जा रहे थे, रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला, लोगों को पता लगा कि तुलसीदास जी आगरा में पधारे हैं।


यह सुन कर 

उनके दर्शनों के लिए लोगों का ताँता लग गया। 

जब यह बात बादशाह अकबर को पता लगी तो उन्होंने बीरबल से पूछा कि यह तुलसीदास कौन हैं ??


तब बीरबल ने अकबर को बताया कि इन्होंने ही रामचरितमानस का अनुवाद किया है।

यह रामभक्त तुलसीदास जी हैं। 

मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ अद्भुत और अलौकिक छवि है इनकी। 


अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त की और कहा मैं भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ।


बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों की एक टुकड़ी को तुलसीदास जी के पास भेजा और  तुलसीदास जी को बादशाह का पैगाम सुनाया कि आप लालकिले में हाजिर हों। 


यह पैगाम सुन कर तुलसीदास जी ने कहा कि मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूँ, मुझे बादशाह और लालकिले से क्या लेना-देना और 

वे लालकिले जाने के लिए  साफ मना कर दिये। 


जब यह बात बादशाह अकबर तक पहुँची तो उसे बहुत बुरी लगी 

और बादशाह अकबर गुस्से में लाल-लाल हो गया, और उन्होंने तुलसीदास जी को जंज़ीरों से जकड़बा कर लाल किला लाने का आदेश दिया। 


हालांकि 

अकबर को यैसा नहीं करने की सलाह बीरबल ने दी, 

किन्तु अकबर नहीं माना

और तुलसीदास जी को जंजीरों से बाँध कर लाने का फरमान सुना दिया। 


तुलसीदास जी को जंजीरों से जकड़ लालकिला लाया गया तो अकबर ने कहा की आप कोई करिश्माई व्यक्ति लगते हो, कोई करिश्मा करके दिखाओ और छूट जाओ। 


तुलसीदास जी ने कहा-

मैं तो सिर्फ भगवान श्रीराम जी का भक्त हूँ कोई जादूगर नही हूँ, जो आपको कोई करिश्मा दिखा सकूँ। 


अकबर यह सुन कर और आगबबूला हो गया 

और आदेश दिया की इनको जंजीरों से जकड़ कर काल कोठरी में डाल दिया जाये।


दूसरे दिन इसी आगरा के लालकिले पर लाखों बंदरों ने एक साथ हमला बोल दिया, पूरा का किला तहस-नहस कर डाला । 


लालकिले में चारो ओर त्राहि-त्राहि मच गई, तब अकबर ने बीरबल को बुला कर पूछा कि बीरबल यह क्या हो रहा है, 

तब बीरबल ने कहा हुज़ूर मैंने आपको पहले ही आगाह किया था 

किंतु आप माने नहीं 

और आप करिश्मा देखना चाहते थे तो देखिये।


अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी को काल कोठरी से निकलवाया। और 

जंजीरे खोल दी गई। 

तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा मुझे बिना अपराध के सजा मिली है।


मैंने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया, 

मैं रोता जा रहा था। 

और रोते-रोते मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे। 

यह 40 चौपाई, 

हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। 

कारागार से छूटने के बाद तुलसीदास जी ने कहा जैसे हनुमान जी ने मुझे कारागार के कष्टों से छुड़वाकर मेरी सहायता की है, उसी तरह जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में  होगा और इसका पाठ करेगा, उसके कष्ट और सारे संकट दूर होंगे। 



इसको हनुमान चालीसा के नाम से जाना जायेगा।


अकबर बहुत लज्जित हुआ और तुलसीदास जी से माफ़ी मांगी और पूरी इज़्ज़त और पूरी हिफाजत, लाव-लश्कर से मथुरा भिजवाया।


आज हनुमान चालीसा का पाठ सभी लोग कर रहे हैं। 

और 

हनुमान जी की कृपा उन सभी पर हो रही है। 

और सभी के संकट दूर हो रहे हैं। 

हनुमान जी को इसीलिए "संकट मोचन" भी कहा जाता है।


ऐसी ही संस्कारित और प्रेरक पोस्ट अपने मित्रों तक भी पहुचायें, कृपया अधिक से अधिक शेयर करें।

राजपूत और मांसाहार

*राजपूत और मांसाहार*...
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राजपूतों ने जब से मांसाहार और शराब को अपनाया तभी से मुगल से पराजित होना शुरू हुआ…
राजपूतों का सिर धड से अलग होने के बाद कुल देवी युद्ध लडा करती थी…
“एक षड्यंत्र और माँस और शराब की घातकता….”
हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये..,
ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है.........
ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !
जानिये एक सच्ची ऐतिहासिक घटना…
“एक षड्यंत्र और शराब की घातकता….”
कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??
जानिये और फिर सुधार कीजिये !!
             मुगल का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे ।
            उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की “है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?”
              सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !
               तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा “है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??
                 सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया !
वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल थे !
रिड़मल जी ने कहा, “मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है…, सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में !
                 मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया !
कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से
तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से…।
बादशाह का मुँह देखने लायक था ,
ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।
“बाते मत करो राव…उदाहरण दो वीरता का।”
रिड़मल ने कहा “क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??”
बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,
रिड़मल बोले ” इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की ….......!! ”
बादशाह हंसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला
“इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ?
               मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।”
राव रिड़मल निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए।
              रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।
              रात को ११ बजे रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी।
              ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,
             घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले
              ” जोधपुर महाराज… आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ।
              हुकम आप अंदर पधारो…मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता।
              राव रिड़मल ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी
              अब आप ही बताये कि जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?
         रोहणी जागीदार बोले ,” बस इतनी सी बात..
             मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे ”
                राव रिड़मल को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को।
              सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!
               उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ,” महाराज थोडा रुकिए !!
मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।”
              राव रिड़मल ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है कैसे मानेगा ! अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,
              एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।
               ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा........
” आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को........ ,
दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है........ ?
आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा....... !
ठकुरानी जी ने कहा.......
“बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर
छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो”
            दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे।
             बड़े लड़के को मैदान में लाया गया और मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..
            तभी बीकानेर महाराजा बोले “ये क्या तमाशा है ?
              राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?
               बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो…
               २० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।
           दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,
            मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,
             इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।
           ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा.......” ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर…तलवार से ये नही मरेगा…
            कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।
               सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी और मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा।
              बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा था
               ये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा
              लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली।
               उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।
               बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था।
            हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था।
             बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।
            एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो।
            राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो।
             दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए।
              मौलवी ने बादशाह को कहा ” हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।
              यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ।
             यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे।
                उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए।
           और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूर रहिये।
            माँसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्ति पर गर्व करने वाले राजपूतों को यदि ज्ञात हो तो बताएं और आत्म मंथन करें कि महाराणा प्रताप की बेटी की मृत्यु जंगल में भूख से हुई थी क्यों …?
            यदि वो मांसाहारी होते तो जंगल में उन्हें जानवरों की कमी थी क्या मार खाने के लिए…?
             इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा शाकाहारी थे केवल कुछ स्वार्थी राजपूतों ने जिन्होंने मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली थी वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे और अपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये राजपूत भाइयो ये सच्ची घटना है और हमे राजपूत समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा।
          तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।
🙏🏻नमन ऐसी वीर परंपरा को ।🙏🏻 
🙏🏻एक क्षत्रिय की कलम से...🙏🏻
🙏🏻जय श्री राम🙏🏻
🙏🏻जय माँ भवानी🙏🏻

सभी से निवेदन है कि वे अपने सभी परिचितों को, चाहे उनके पास Whatsapp ना हो, उन्हे मौखिक रूप से इस शर्मनाक घटना की सच्चाई से अवगत करावैं 

🙏🏻भारत माता की जय🙏🏻

*🙏🏻 सनातन धर्म जिंदाबाद 🙏🏻*🚩🚩🚩🚩🚩🚩

 
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