Sunday 15 August 2021

सगत रासो - Sagat Raso

એક એવી સત્ય ઘટના કે જે કોઇને કહેવામાં આવતી નથી!!

અકબર દર વર્ષે દિલ્હીમાં નૌરોઝ મેળો યોજતો હતો, જેમાં પુરુષોને પ્રવેશ નિષેધ હતો...!

આ મેળામાં સ્ત્રીઓની વેશભૂષામાં અકબર જાતો હતો અને જે સ્ત્રી એને ગમી જાતી (એનામાં મોહી પડતો હતો) એને એની દાસીઓ છળકપટથી અકબર સન્મુખ લઈ જાતી હતી...!

એક દિવસ નૌરોઝના મેળામાં મહારાણા પ્રતાપની ભત્રીજી, અનુજ શક્તિસિંહની દીકરી મેળાની સજાવટ જોવા આવી. એનું નામ બાઇસા કિરણદેવી હતું અને એ બિકાનેરના પૃથ્વીરાજજી સાથે પરણી હતી. બાઇસા કિરણદેવીનાં રૂપ અને સૌંદર્ય જોતાં જ અકબર એનામાં એવો તો મોહી પડ્યો કે પોતાની જાત ઉપર કાબૂ ન રાખી શક્યો. એણે કશું જ લાંબું-ટૂંકું વિચાર્યા વગર જ દાસીઓ મારફતે ઝનાના મહેલમાં બોલાવી લીધી..!

એ પછી બાઇસા કિરણદેવીને અકબરે સ્પર્શ કરવા  પ્રયાસ કર્યો, પણ બાઇસા કિરણદેવી એની દાનત પામી ગઈ ... કિરણદેવીએ એક પળનોયે વિલંબ કર્યા વગર જ પોતાની કેડ પર રાખેલ મ્યાનમાંથી તલવાર એક જ ઝાટકે બહાર ખેંચી કાઢી અને અકબરને જોરદાર લાત મારીને ભોં ભેગો કરી દીધો; એની છાતી ઉપર પગ દઈને તલવાર અકબરની ગરદન પર રાખી દીધી...!!

અને કહ્યું,... નીચ...., ...નરાધમ, તને ખબર નથી કે હું એ મહારાણા પ્રતાપની ભત્રીજી છું, કે...   જેનાં નામ માત્રથી તારી ઊંઘ હરામ થઈ જાય છે.....!!  બોલ, તારી અંતીમ ઇચ્છા શું છે..???

અકબરનું લોહી સૂકાઈ ગયું...!

કદાપિ વિચાર્યું ય નહોતું કે કહેવાતો સમ્રાટ અકબર બાઇસા કિરણદેવી નામની સ્ત્રીનાં ચરણોમાં ધૂળ ચાટતો થઈ જાશે..!!!!!

અકબર બોલ્યો : હું ઓળખવામાં માર ખાઈ ગયો છું...;   દેવી, મને માફ કરી દો..!

ત્યારે બાઇસા કિરણદેવીએ કહ્યું : આજ પછી કોઇ દિવસ દિલ્હીમાં નૌરોઝ મેળો ભરવાનો નથી...!!
અને તું કોઇ દિ' કોઇ સ્ત્રીને હેરાન પરેશાન કરતો નહીં...!

અકબરે બે હાથ જોડીને વચન આપ્યું કે આજ પછી કોઇ દિવસ નૌરોઝ મેળો નહીં ભરું!!!

તે દિવસથી કાયમ માટે દિલ્હીમાં નૌરોઝ મેળો ભરાતો બંધ થઈ ગયો!

ગિરધર આસિયા રચિત सगत रासो માં ૬૩૨માં પાનાં પર આ ઘટનાનું વર્ણન થયેલું છે.

બિકાનેર સંગ્રહાલયમાં લગાવેલાં એક ચિત્ર સાથે લખેલ દોહામાં આ ઘટના કહેવાઈ છે...

"किरण सिंहणी सी चढ़ी, उर पर खींच कटार..!
भीख मांगता प्राण की, अकबर हाथ पसार....!!"

ભોં ભેગા કરેલા અકબરની છાતી ઉપર પગ રાખીને ઊભેલી વીરાંગના કિરણદેવીનું એ ચિત્ર આજે જયપુરનાં સંગ્રહાલયમાં સચવાયેલું જોવા મળે છે.

આપણા આવા ગૌરવવંતા ઇતિહાસનાં પૃષ્ઠો પર સૂવર્ણાક્ષરે આલેખાયેલી ખમીરવંતી વીરાંગનાઓની, ખુમારી ભરી યશગાથાનો વ્યાપક/બહોળો પ્રચાર-પ્રસાર કરો અને ધર્મનાં રક્ષણ કાજે આવી વાર્તાઓ સહુને સંભળાવો.

કોટી કોટી વંદન એ ક્ષત્રિયણીને.👏👏👏

Thursday 15 July 2021

मुगलों को महान बतलाने वाला नकली इतिहास

जब औरंगजेब ने मथुरा का श्रीनाथ मंदिर तोड़ा तो मेवाड़ के नरेश राज सिंह 100 मस्जिद तुड़वा दिये थे।
अपने पुत्र भीम सिंह को गुजरात भेजा, कहा 'सब मस्जिद तोड़ दो तो भीम सिंह ने 300 मस्जिद तोड़ दी थी'।

वीर दुर्गादास राठौड़ ने औरंगजेब की नाक में दम कर दिया था और महाराज अजीत सिंह को राजा बनाकर ही दम लिया।

कहा जाता है कि दुर्गादास राठौड़ का भोजन, जल और शयन सब अश्व के पार्श्व पर ही होता था। वहाँ के लोकगीतों में ये गाया जाता है कि यदि दुर्गादास न होते तो राजस्थान में सुन्नत हो जाती।

वीर दुर्गादास राठौड़ भी शिवाजी के जैसे ही छापामार युद्ध की कला में विशेषज्ञ थे। 

मध्यकाल का दुर्भाग्य बस इतना है कि हिन्दू संगठित होकर एक संघ के अंतर्गत नहीं लड़े, अपितु भिन्न भिन्न स्थानों पर स्थानीय रूप से प्रतिरोध करते रहे।

औरंगजेब के समय दक्षिण में शिवाजी, राजस्थान में दुर्गादास, पश्चिम में सिख गुरु गोविंद सिंह और पूर्व में लचित बुरफुकन, बुंदेलखंड में राजा छत्रसाल आदि ने भरपूर प्रतिरोध किया और इनके प्रतिरोध का ही परिणाम था कि औरंगजेब के मरते ही मुगलवंश का पतन हो गया।

इतिहास साक्षी रहा है कि जब जब आततायी अत्यधिक बर्बर हुए हैं, हिन्दू अधिक संगठित होकर प्रतिरोध किया है। हिन्दू स्वतंत्र चेतना के लिए ही बना है। हिंदुओं का धर्मांतरण सूफियों ने अधिक किया है। तलवार का प्रतिरोध तो उसने सदैव किया है, बस सूफियों और मिशनरियों से हार जाता है।
 बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गया।
कुल 100 वर्ष (अकबर 1556ई. से औरंगजेब 1658ई. तक) के समय के स्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है....
मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भाग कर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा....!

अब इस स्थिर (?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ....इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 100 वर्षों के इर्द गिर्द ही है।

जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीं था। दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था।
अब जरा विचार करें..... क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्षों तक राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है ?
*अकेला विजयनगर साम्राज्य ही 300 वर्षों तक टिका रहा।  
हम्पी नगर में हीरे माणिक्य की मण्डियां लगती थीं।
 महाभारत युद्ध के बाद 1006 वर्ष तक जरासन्ध वंश के 22 राजाओं ने, 
5 प्रद्योत वंश के राजाओं ने 138 वर्ष , 
10 शैशुनागों ने 360 वर्षों तक , 
9 नन्दों ने 100 वर्षों तक ,
 12 मौर्यों ने 316 वर्षों तक ,
 10 शुंगों ने 300 वर्षों तक ,
 4 कण्वों ने 85 वर्षों तक ,
 33 आंध्रों ने 506 वर्षों तक ,
 7 गुप्तों ने 245 वर्षों तक राज्य किया ।
और पाकिस्तान के सिंध, पंजाब से लेके अफ़ग़ानिस्तान के पर समरकन्द तक राज करने वाले रघुवंशी लोहाणा(लोहर-राणा) जिन्होने देश के सारे उत्तर-पश्चिम भारत वर्ष पर राज किया और सब से ज्यादा खून देकर इस देश को आक्रांताओ से बचाया, सिकंदर से युद्ध करने से लेकर मुहम्मद गजनी के बाप सुबुकटिगिन को इनके खुद के दरबार मे मारकर इनका सर लेके मूलतान मे लाके टाँगने वाले जसराज को भुला दिया। 
कश्मीर मे करकोटक वंश के ललितादित्य मुक्तपीड ने आरबों को वो धूल चटाई की सदियो तक कश्मीर की तरफ आँख नहीं उठा सके। और कश्मीर की सबसे ताकतवर रानी दिद्दा लोहराणा(लोहर क्षत्रिय) ने सब से मजबूत तरीके से राज किया। और सारे दुश्मनों को मार दिया।
तारीखे हिंदवा सिंध और चचनामा पहला आरब मुस्लिम आक्रमण जिन मे कराची के पास देब्बल मे 700 बौद्ध साध्विओ का बलात्कार नहीं पढ़ाया जाता। और इन आरबों को मारते हुए इराक तक भेजने वाले बाप्पा रावल, नागभट प्रथम, पुलकेसीन जैसे वीर योद्धाओ के बारेमे नहीं पढ़ाया जाता।*
फिर विक्रमादित्य ने 100 वर्षों तक राज्य किया था । इतने महान सम्राट होने पर भी भारत के इतिहास में गुमनाम कर दिए गए ।

उनका वर्णन करते समय इतिहासकारों को मुँह का कैंसर हो जाता है। सामान्य ज्ञान की किताबों में पन्ने कम पड़ जाते है। पाठ्यक्रम के पृष्ठ सिकुड़ जाते है। प्रतियोगी परीक्षकों के हृदय पर हल चल जाते हैं।
वामपंथी इतिहासकारों ने नेहरूवाद का मल भक्षण कर, जो उल्टियाँ की उसे ज्ञान समझ चाटने वाले चाटुकारों...!
तुम्हे धिक्कार है !!!

यह सब कैसे और किस उद्देश्य से किया गया ये अभी तक हम ठीक से समझ नहीं पाए हैं और ना हम समझने का प्रयास कर रहे हैं।

एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हिन्दू योद्धाओं को इतिहास से बाहर कर सिर्फ मुगलों को महान बतलाने वाला नकली इतिहास पढ़ाया जाता है। महाराणा प्रताप के स्थान पर अत्याचारी व अय्याश अकबर को महान होना लिख दिया है। 
ये इतिहास को ऐसा प्रस्तुत करने का जिम्मेवार सिर्फ एक व्यक्ति है वो है
मौलाना आजाद
भारत का पहला केंद्रीय शिक्षा मंत्री
अब यदि इतिहास में उस समय के वास्तविक हिन्दू योद्धाओं को सम्मिलित करने का प्रयास किया जाता है तो विपक्ष  शिक्षा के भगवा करण करने का आरोप लगाता है !

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🙏जय श्री राम🙏

Monday 12 July 2021

सुहेलदेव की पूरी विजय गाथा - भाग - 1।

महाराजा सुहेलदेव... जिनकी तलवार के तूफान से अरब और ईरान के घर-घर में चिराग बुझ गए थे ! 


- बहराइच में तुर्की हमलावर गाजी सालार मसूद की दरगाह पर चादर चढ़ाने के बाद एक बार फिर महाराज सुहेलदेव का नाम सुर्खियों में आ गया है


- वो इसलिए क्योंकि महाराजा सुहेदलेव ही थे जिन्होंने 17 बार सोमनाथ मंदिर का विध्वंस करने वाले महमूद गजनवी और उसके भांजे गाजी सालार मसूद से ऐतिहासिक बदला लिया था


- गाजी सालार मसूद की जीवनी 17वीं शताब्दी में लिखी गई जिसका नाम था मिरात-ए-मसूदी... इसे लिखा था उस वक्त के सूफी अब्दुर्रहमान चिश्ती ने ।


- जिस युद्ध में गाजी सालार मसूद मारा गया उस युद्ध को इतिहास में बैटल ऑफ बहराइच कहा जाता है । बहराइच के इस युद्ध का पूरा वर्णन... मिरात-ए-मसूदी में मौजूद है ।


- सालार मसूद की जीवनी मिरात-ए-मसूदी में अब्दुर्रहमान चिश्ती लिखता है... मौत का सामना है फिराक सूरी नजदीक है हिंदुओं ने जमाव किया है इनका लश्कर बेइन्तिहा हैं सुदूर नेपाल से पहाड़ों के नीचे घाघरा नदी तक फौज मुखालिफ का पड़ाव है । ये कहकर वो बिलख बिलख कर रो पड़ा । रहम कर जान बख्शी दे। 


- चिश्ती ने लिखा है कि महाराजा सुहेलदेव की घेराबंदी इतनी जबरदस्त थी कि जबरदस्त तुर्की मिलिट्री लीडर रहा गाजी सालार मसूद भी फफक फफक कर रोने लगा 


- चिश्ती आगे लिखता है कि इस समय कौन रहम दिल इंसान हो सकता था जो ऐसी हालत में सालार मसूद का साथ छोड़ता । रजब महीने की 14वीं तारीख (14 जून 1033) के दिन सालार मसूद सहित उसकी संपूर्ण सेना का सुहेलदेव की सेना ने सर्वनाश कर दिया । कोई पानी देने वाला भी ना रहा।


- अपनी इसी किताब में आगे शेख अब्दुर्रहमान चिश्ती लिखता है... मजहब के नाम पर जो अंधड़ अयोध्या बहराइच तक जा पहुंचा था वो सब नष्ट हो गया । इस युद्ध में अरब और ईरान के घर घर का चिराग बुझ गया । 



- राजा सुहेलदेव की सेना ने इस युद्ध में लाखों की संख्या में तुर्की मुसलमानों को मार दिया था । ये रक्तपात इतना बड़ा था कि इसके बाद 160 साल तक भारत पर कोई इस्लामी शासक हमला करने की हिम्मत भी नहीं जुटा सका । 


- लेकिन राजा सुहेलदेव के इतिहास को वामपंथी इतिहासकारों ने अपनी कुत्सित मानसिकता को संतुष्ट करने के लिए विचारधारा के ताबूत में दफन कर दिया 


- सुहेलदेव की पूरी विजय गाथा आपको आगे की पोस्ट में बताएंगे


- आप से अनुरोध है कि राजा सुहेलदेव की इस वीरगाथा को हर किसी तक पहुंचाएं.. लिंक को भारी मात्रा में शेयर करें

 
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